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Saturday, March 24, 2012

"हिंदुस्तान मै दो भारत भारत बसते है" ?? : अनुराग कुमार


आरक्षण एक ऐसी परम्परा  है जिसकी  शुरुआत  देश मै जातीयता की खाई को  पाटने के लिए और पिछडो  के उत्थान  के लिए  शुरु किया गया था | परन्तु आज आरक्षण एक ऐसी वस्तु  बन चुकी है जो जातीयता की लड़ाई  की आग मे घी का काम कर रही है | इस आग को बढ़ाने का काम हमारे राजनेता कर रहे है | आज लोग आरक्षण की बातें  सिर्फ इसलिए कर रहे है  क्यूंकि उनका  अपना मतलब सिद्ध होता है | आज कोई भी नैतिकता की बातें नहीं करता है,आज कोई दूसरो  की भलाई की बातें नहीं करता,आज कोई आम आदमी और गरीबो की बातें नहीं करता, आज तो  बातें होती है सिर्फ जातीयता की,बातें होती है खुद की उत्थान  की बातें होती है, जाति और आरक्षण के नाम पर किसी विशेष को फायदा पहुचाने की और इन सब चीजों के बीच हमारा वो हिंदुस्तान कहीं पीछे रह गया है जिसका  सपना भगत सिंह,गाँधी,सुभाष ने देखा था | आज हम अपने चारो ओर देखते है की आरक्षण की लड़ाई लगी हुई है हर किसी को आरक्षण चाहिए,किसी को धर्म के नाम पर किसी को जात के नाम पर | आज हालत ये है की अमीर  आदमी भी आरक्षण की मांग करते है और वोट की गन्दी राजनीती करने वाली सरकार उनका समर्थन करती है |

इस सन्दर्भ मे हाल मै हुए   उत्तर प्रदेश के  चुनाव का एक छोटा सा उदाहरण है जिसमे  हमारे नेता लोग ने धर्म विशेष लोगो की वोट की उम्मीद   मे धार्मिक  आरक्षण  के लिए बोली लगाई जैसे एक पार्टी ने ४% की लगाई तो  अगले ने ९% की लगाई  तब अगली पार्टी पीछे  क्यूँ रहती उसने १८% की बोली लगाई और परिणाम यह रहा की जबसे ज्यादा  बोली लगाने वाले पार्टी को ही जनता ने बहुमत दिया क्यूंकि वो पार्टी सबसे ज्यादा सेकुलर पार्टी की रूप मै   सामने आई | ये समझ मै नहीं आता की लोग आरक्षण की नाम पर किसी पार्टी को सेकुलर या गरीबो का मसीहा कैसे मान लेती  है?कहीं हमारे हिंदुस्तान की तस्वीर और बुरी न हो जाये, आरक्षण के आग मे कही करीब आने के बाजे हमारे देश के लोग और दूर  न हो जाएं एक दुसरे से| इस बात पर हमें सोचने की जरुरत है की हिंदुस्तान मे कहीं दो के जगह  कई  भारत ना हो जाए?